मकर सक्रांति पर्व पर बुधवार को नर्मदा और शिप्रा नदी में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ महेश्वर, ओंकारेश्वर और उज्जैन के घाटों पर पहुंचना प्रारंभ हो गई है। यहां स्थित मंदिरों के अलावा साधु, संत व परिक्रमावासियों को तिल, गुड़ व खिचड़ी का दान किया जा रहा है। पर्व को लेकर युवाओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है। महिलाएं भी हल्दी-कुमकुम का आयोजन कर एक-दूसरे को सुहाग सामग्री प्रदान कर रही है।
इंदौर में जमकर हुई पतंगबाजी
मकर संक्रांति के अवसर पर इंदौर में जमकर पतंगबाजी हो रही है। मल्हारगंज, राजबाड़ा, छत्रीबाग, लोधीपुरा, इतवारिया, बड़ा गणपति, बंबई बाजार, जूनी इंदौर सहित शहर के अनेक क्षेत्रों में लोग अपने घरों की छत पर एकत्र होकर पतंगबाजी करते दिखाई दे रहे हैं। आमजन के अलावा नेताओं द्वारा भी पतंगबाजी की जा रही है। मप्र के खेल मंत्री जीतू पटवारी ने राऊ में पतंग उड़ाई तो भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अपने विधायक पुत्र आकाश और रमेश मेंदोला के साथ चिमनबाग मैदान पर पतंगबाजी की।
शिप्रा का पानी स्नान योग्य
उज्जैन के रामघाट पर शिप्रा स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा रही है। शिप्रा नदी के पानी की दैनिक भास्कर ने जांच कराई जिसमें पानी को साफ बताया गया है। इससे स्नान करने से कोई नुकसान नहीं है। हालांकि पीने के लिए पानी को फिल्टर प्लांट में साफ करने के बाद ही उपयोग किया जा सकता है। यह पानी केवल स्नान के लिए है। गौरतलब है कि शिप्रा में कान्ह नदी का गंदा पानी आ जाने के कारण पूरा पानी प्रदूषित हो गया था। मकर संक्रांति स्नान के लिए प्रशासन ने शिप्रा में भरे प्रदूषित पानी को खाली कराकर उसमें नर्मदा का साफ पानी डाला है।
तैराक दल और एंबुलेंस तैनात
मकर संक्रांति का मुख्य स्नान उज्जैन के रामघाट पर हो रहा है। प्रशासन द्वारा स्नानार्थियों के लिए घाटों की पर्याप्त सफाई करवाई गई है। घाट पर स्थायी के अलावा अस्थायी चेंजिंग रूम भी बनाए गए हैं। यात्रियों को स्वास्थ्य सहायता देने के लिए एंबुलेंस भी तैनात है। इसके अलावा तैराक और पुलिस बल भी तैनात किया गया है।
1700 साल पहले 22 दिसंबर को मनती थी मकर संक्रांति
ज्योतिषियों के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए 72 से 90 साल में एक अंश पीछे रह जाती है। इस कारण से सूर्य का धनु से मकर राशि में संक्रमण एक दिन देरी होता है। 1700 साल पहले 22 दिसंबर को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता था। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति में 72 से 90 साल में एक अंश का अंतर आता गया और सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की तारीख उसी के अनुरूप आगे बढ़ती गई। 1927 से पहले मकर संक्रांति 13 जनवरी को मनाई जाती थी। इसके बाद 14 नवंबर को मनाने लगे।